prashn-pragya  bhag .1
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prashn-pragya bhag .1

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जातक और पृथ्वी का अन्योनाश्रित सम्बन्ध है I पृथ्वी गतिशील है ,ग्रह भी गतिमान है I चन्द्रमा की गति सबसे  तीव्र है I परन्तु नक्षत्र स्थिर हैI पृथ्वी और ग्रहों के बीच की दूरी और कोणीय दिशा निरंतर एक जैसी  नहीं रहती I पृथ्वी पर स्थित जड़ चेतन पर इस निरंतर बदलती हुई ग्रहों और पृथ्वी के कोणीय दिशा का प्रभाव का पड़ना स्वाभाविक है l अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि पृथ्वी के सापेक्ष ग्रहों कस भिन्न -भिन्न समय पर कोणीय दिशा परिवर्तित होते रहने के कारण जातक के प्रकृति, मानसिक, बौध्दिक एवं भौतिक चिंतन भी प्रभाविक होगें l  अत: समय -समय पर उनके फलों में भी भिन्नता आना स्वाभाविक है l कोणीय दिशा को भी समझ लेना चाहिए l कोणीय दिशा क्या होता है l स्थिर विज्ञान के अनुसार अगर देखे तो जब हम अपने चारों ओर स्थिर वस्तुओं को एक ही समय में देखते है तो भिन्न -भिन्न वस्तुएं हमें विभिन्न कोणों पर दिखाई पड़ती है l इस प्रकार वस्तु और दृष्टि के बीच जो कोण बनते है वह स्थिर कोणीय मान रूप में जाने जाते है l इसी प्रकार यदि गति विज्ञानं के अनुसार विश्लेषण  करे तो - जबकि द्रष्टा व वस्तु दोनों गतिमान हो तो दोनों के दृष्टिगत होने का आपसी कोणीय मान निरंतर एक समान नहीं रहता है l अत: यह स्वयं सिध्द है कि उन दोनों का कोणीय मान निरंतर बदलता रहता है जो कभी भी समान नहीं रहता l यही प्रश्न फलित विज्ञान  का मूल रहस्य है जहाँ नक्षत्र स्थिर होते है l और उसके सापेक्ष ग्रह का कोणीय मान बदलता रहता है l जिसके कोणीय मान ज्ञान हम नक्षत्र को आधार मानकर करते है इस प्रकार ग्रहों नक्षत्रों का प्रभाव एक निश्चित समय पर जिस कोणीय मान से जातक पर पड़ता है l उसके फलित प्रभाव व परिणाम की गणना ही प्रश्न फलित विज्ञान का मूल आधार और रहस्य है l  

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