कालसर्प योग

कालसर्प योग 

काल सर्प योग सम्बंधित मिथ्या धरणा, भ्रम और भ्रान्ति को निर्मूल करके उसकी वास्तविकता को जानने का भारतीय वैदिक ज्योतिष संस्थानम् का उद्देश्य है I जबकि काल सर्प योग का नाम ही आतंक, अभाव, अवरोध, विरोध, अनिष्ठ, अप्रत्यशित असफलता अनाचार, अनेक दुर्दमनीय,दारुण दु:खोंतथा दुर्भाग्य,दुर्भिक्ष के पर्याय का मानक बना हुआ है I 

काल सर्प योग के ज्योतिष ग्रह योग एवं उसके बहुआयामी परिणाम-सैध्दांतिक एवं व्यावहारिक विश्लेषण अंतर विरोधों से भरे हुए है I राहू केतु के मध्य में शेष सभी ग्रहों के आ जाने से काल सर्प योग का निर्माण माना जाता हैI सिध्दांत रूप से कुछ ज्योतिर्विद इसे मान्यता देते हैl और इससे आक्रांत जातक को व्यथित,भ्रमित तथा भयभीत करके ज्योतिष के ज्ञान को अस्त्र बनाकर भारतीय ज्योतिष की वैज्ञानिकता और उसकी आस्था पर चोट पहुँचाने हैl क्योंकि काल सर्प योग की  ऐसी बहुत सी कुण्डलियां उपलब्ध है l जिनका जीवन उच्च आदर्शों का मानक और अनुकरणीय रहा है lजैसे डाक्टर राधा कृष्णन,धीरू भाई अम्बानी, महर्षि महेश योगी,पंडित जवाहर लाल नेहरू, सचिन तेंदुलकर, सम्राट अकबर, व्ही.शांताराम,मुरली,मनोहर जोशी,सरदार वल्लभ भाई पटेल,शंकराचार्य,स्वामी स्वरुपानंद जी,वेनिटी मुसोलिक,वरिष्ट वैरिस्टार राम जेठ मलानी,अब्राहम लिंकन,मोरारी बापू,इंग्लैंड महारानी मार्गरेट थैचर,आदि विश्व के अनेक ऐसे विशिष्ट व्याकतियों के जन्मांगों में यह तथाकथिक कालसर्प योग पाया जाता हैI काल सर्प योग की भ्रान्ति और जनता के व्यथा के निवारणार्थ भारतीय वैदिक ज्योतिष संस्थानम् आप सभी विद्वानों से मार्गदर्शन चाहता हैI

किसी क्षेत्र का ज्ञान जब विशेष परिस्थितियों में सदैव एक सा ही स्वरूप आकार और परिणाम उपस्थित करता है तो वह बिज्ञान कहलाता हैI यह एक सर्व स्वीकार्य सत्य हैI काल सर्प योग के सम्बन्ध में कुछ ज्योतिर्विदों का मानना है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में यह कालसर्प योग प्रभावी भी होता है और प्रभावहीन भी होता हैI यह तथ्य तर्क संगत नहीं हैI यह ज्योतिष की वैज्ञानिकता की पुष्टि नहीं करताI कालसर्प योग के सम्बन्ध में कुछ राष्ट्रीय स्तर के ज्योतिर्विदों का मत आपके सामने रखता हुंI आचार्य भाष्करानंद लोहानी,प्रख्यात ज्योतिर्विद डाक्टर वी० एन० राव,विश्व विख्यात दक्षित भारत के ज्योतिर्विद डाक्टर वि० वि० रमन इसे अवैज्ञानिकता मानते हैI इसके विपरीत ज्योर्तिविद  डाक्टर रश्मि चौधरी, डॉ०वी०एन०शर्मा,आचार्य सुरेन्द्र शर्मा ग्वालियर,डॉ० मनोज कुमार, राज ज्योतिष जय प्रकाश शर्मा,डॉ० राम नरेश त्रिपाठी,वेद मूर्ति श्री पुरुषोत्तम बाला साहेब लोहगांवकर, आचार्य श्री भूषण साम्भ शिखरे,त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र के काल सर्प योग के शांति पूजा के वरिष्ट आचार्य, काल सर्प योग को सिध्दांत: को स्वीकार करते हैI 

इस सन्दर्भ में एक विद्वान ने अपनी प्रमुख पत्रिका में यहां तक लिखा दिया कि कालसर्प योग जब बनता है तो पृथ्वी की आकर्षण शक्ति भी प्रभावित हो जाती हैI

काल सर्प योग को योग कहने पर प्रश्न उत्पन्न होता है कि इसे योग क्यों कहा गया क्योंकि ज्योतिष ग्रंथों में जितने भी शुभ या अशुभ योग है जैसे पंचमहपुरुष, केमद्रुम योग, पापकर्तरी तथा षडाष्टक योग आदि का वर्णन आता हैI उनके परिणाम सुनिश्चित रहते हैI वे प्रभावित नहीं होतेI सदैव एक सा ही परिणाम देते हैI जबकि कुंडली के अन्य ग्रहों का कुछ भी फल हो सकता हैI 

कुछ विद्वान का मत है कि राहू-केतु के मध्य में सभी ग्रह के आने उन ग्रहों  पर राहू-केतु के अन्धाकारत्व का कारक प्रभावी हो जाता हैI यह निराधार तर्क हैI क्योकि तब तो शनि और मंगल के मध्य सभी ग्रह आ जाये तो इनके सभी ग्रहों को अपने प्रभाव में ले लेना चाहिएI इस कारण से इस योग को भी रक्त रंजित योग का नाम दे देना चाहिए I

एक विचारणीय तर्क और है कि हमारे महर्षियों ने 300 से अधिक योगों का अन्वेषण किया हैI तो इन महान ॠषिगणों की दृष्टि से कालसर्प योग कैसे बच निकला?

हम यह मानते है कि ज्ञान-विज्ञान के अध्ययन शोध,अनुसंधान,की सीमा नहीं होनी चाहिएI शोध की प्रक्रिया निरंतर गतिमान रहनी चाहिएI हमारा बस इतना कहना है कि कोई भी अनुसंधान भ्रमात्मक न हो I कोई भी सिध्दांत सार्वदेशिक सत्य को प्रमाणित करने वाला होना चाहिएI अपनी-अपनी ढफली अपना अपना राग एक वैज्ञानिक चिंतन नही हो सकताl 

इस सन्दर्भ में आप सभी माननीय विद्वान से निवेदन है कि पक्ष और विपक्ष में अपने तर्कयुक्त वैज्ञानिक चिंतन से काल सर्प योग के मतभेदों को दूर करते हुए इस पर सर्व सम्मत से एक मत को स्थापित करेl जिससे जनमानस में ज्योतिष की वैज्ञानिकता का पूर्ण सम्मान प्राप्त होl धन्यवान l ऋग्वेद के ऋषि कथन है-

अनुब्रुवाणों अध्योति न स्वप्न् l विद्वान पथ: पुरएता ऋतु नेषति l 

(अभ्यास से ही विद्या आती है जानकार मार्गदर्शन ही ठीक मार्गदर्शन करता है l )      

   

 

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