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यह निर्विवाद सत्य है कि कुछ काल के अंतराल में मानव जीवन का समाप्त होना निशिचत है I समय की अनंत परिधि को देखते हुए तो जीव का आस्तित्व क्षणभंगुर होता है, तो विचारणीय है कि शुभ कर्म के विपरीत हम अशुभ अधार्मिक कृत्य क्यों करें ? जो स्वास्थ्य को बाधित क्र हमारे मृत्यु तक पहुचने की गति को बदा देता है I जीवन का आरम्भ कहाँ से होता है और अंत कैसे होता है यह विज्ञानं और धर्म दोनों के चिन्तन का प्रमुख विषय रहा है I पाश्चात्य वैज्ञानिक इसके समाधान में दिन-रात एक किये हुये है I शरीर को यांत्रिक रचना मानकर भौतिक साधनों के माध्यम से एक से एक नये अविष्कार करते जा रहे है I परन्तु आज तक परिणाम शून्य ही है I उनका उस अनंत अनश्वर तक पहुंचना संभव नहीं हो सका है I हमारे ऋषियों ने सृष्टि के आरम्भ में ही वैदिक सूत्रों के माध्यम से आत्मविज्ञान के उत्कृष्ट चिंतन के द्वारा जीवन और मृत्यु का पूर्ण समाधान प्राप्त क्र लिया है l भारतीय दर्शन के अनुसार मृत्यु से क्यों भय करना चाहिए ? मृत्यु कोई अद्भुत रहस्यमयी घटना नहीं है l वह अवश्य संभावित और परम सत्य है l मृत्यु को प्राप्त करने वाले असंख्य व्यक्तियों की पंक्ति में हम भी किसी के पीछे ही खड़े है l मनुष्य अपने जीवन में पांच अवस्थाओं से गुजरता है l 1 .जन्म 2 . बाल्य अवस्था 3 . युवा अवस्था 4 . वृध्द अवस्था 5 . मृत्यु l यह सत्य है कि जीवात्मा ही हमारे कर्म फल को भोगता है l प्रस्तुत मृत्यु योग चिंतन में इन्ही सभी प्रश्नों के उत्तर को उद्घाटित करते हुए मृत्यु के विभिन्न रूपों , कारण एवं अवधि पर ज्योतिष सिध्दांत सूत्रों की विवेचना प्रस्तुत की गयी है l आशा करता हु कि जिज्ञासु पाठक इससे लाभंविकत हो सकेगें l हम मनुष्य है तो कमीयों का रहना स्वाभाविक है l प्ररन्तु गुरुजनों, विद्वतजनों का मार्गदर्शन करने का भी कर्तव्य बनता है l अत: इस विश्वास के साथ आपके आशीर्वाद की आकांक्षा रखते हुए यह लघु ग्रन्थ आप सबकी सेवा में प्रस्तुत है I
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