अक्सर कहा जाता है कि वहां लक्ष्मी नहीं होगी. लक्ष्मी का वाहन उल्लू है जो पढ़ा लिखा नहीं है. वही धनी होगा परन्तु वर्तमान परिप्रेक्षेय में जिसके पास उच्च शिक्षा है, लक्ष्मी वहीँ रहती हैं. देखते हैं ऐसे कौन से योग है जो व्यक्ति को उच्च शिक्षा की ओर ले जाते हैं.
अक्सर कहा जाता है कि वहां लक्ष्मी नहीं होगी. लक्ष्मी का वाहन उल्लू है जो पढ़ा लिखा नहीं है. वही धनी होगा परन्तु वर्तमान परिप्रेक्षेय में जिसके पास उच्च शिक्षा है, लक्ष्मी वहीँ रहती हैं. देखते हैं ऐसे कौन से योग है जो व्यक्ति को उच्च शिक्षा की ओर ले जाते हैं.
भाव व उच्च शिक्षा
पंचम भाव- जन्म कुंडली का पंचम भाव विद्या, बुद्धि व पूर्व जन्मकृत संचित कर्मों का भाव है. यह भाव तथा भावेश शिक्षा के क्षेत्र में फैकल्टी व शिक्षा का स्तर तय करते हैं. यदि पंचम भाव व पंचमेश शुभ दृष्ट या बली है तो शिक्षा उच्च स्तर कि होती है व वह भाव निर्बल है तो शिक्षा अधूरी होगी.
चतुर्थ भाव- जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव मन का भाव है जो यह तय करता है कि व्यक्ति का मन का भाव है जो यह तय करता है कि व्यक्ति का मन किस प्रकार की शिक्षा में लगेगा. यदि चतुर्थ भाव का स्वामी व चन्द्रमा शुभ, ग्रहों से दृष्ट या बली है तो शिक्षा में मन लगता है. अन्यथा पढाई से दृष्टि या बली हैं तो शिक्षा में मन लगता है. अन्यथा पढाई से व्यक्ति का मन उचटता है.
द्वितीय भाव.. जन्म कुंडली का द्वितीय भाव व्यक्ति की मानसिक स्थति अभिव्यक्ति का भाव है. यह तय करता है कि शिक्षा की अभिव्यक्ति का भाव है. यह तय करता है कि शिक्षा कि अभिब्यक्ति कैसी होगी तथा जो शिक्षा वह ग्रहण कर रहा है वह कितना उपयोगी होगी? यदि इस भाव भावेश पर अशुभ प्रभाव हो तो शिक्षा लेने के बावजूद वह शिक्षा उपयोगी नहीं रहती है.
तृतीय भाव- जन्म कुंडली का तृतीय भाव परिश्रम, अभिरुचि व जागृत करता है. शिक्षा के दृष्टिकोण से सामान्य शिक्षा से बढ़कर अर्थात उच्च शिक्षा में अभिरुचि जागृत करता है. इस भाव पर अधिक अशुभ प्रभाव सामान्य शिक्षा तक सीमित करता है. शुभ दृष्टि उच्च शिक्षा की ओर ले जाती है.
अष्टम भाव – इस भाव को प्रायः अशुभ भाव कहा जाता है परन्तु जो व्यक्ति अनुसन्धान कर रहा है इसके लिए उपयोगी भाव है.
दशम भाव- जन्म कुंडली का दशम भाव कर्म क्षेत्र कहलाता है व इससे जो शिक्षा व्यक्ति ने ग्रहण की है वह कर्म क्षेत्र को प्रभावित करेगी. वह व्यक्ति के कर्म क्षेत्र में उच्च शिक्षा कि उपयोगिता को दर्शाता है.
लग्न भाव- यह भाव कुंडली का आधार स्तम्भ कहा जाता है. यदि शरीर स्वस्थ है तभी जातक आगे अध्ययन करता है.
ग्रह व शिक्षा
ज्योतिष मे गुरु ज्ञान का,बुध बुद्धि का, चंद्रमा मन का, सूर्य यश का, शुक्र कला का, शनि अनुसन्धान का व मंगल पराक्रम का गृह कहलाता है. यही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ सभी ग्रह अपनी भूमिका बाखूबी निभातें हैं.
कौन से ग्रह कौन सी शिक्षा? प्रत्येक गृह अपने हिसाब से शिक्षा के क्षेत्र में ले जाता है. शिक्षा भाव का सम्बन्ध जिन ग्रहों से होगा जातक उसी प्रकार की शिक्षा के क्षेत्र में जायेगा.
सूर्य- चिकित्सा, प्रसाशन, इलेक्ट्रिक, इंजिनियर, जीव विज्ञान.
चन्द्रमा- लेखन, कला काव्य, होटल या पेय पदार्थों से सम्बंधित क्षेत्र.
मंगल- शारीरिक शिक्षा, जीव विज्ञान, खनिज, शल्य चिकित्सा, औषधि.
बुध- गणित, ज्योतिष, बैंकिंग, दर्शन, मार्केटिंग, मैनेजमेंट.
गुरु- कानून, हिंदी, साहित्य, धर्मशास्त्र, संस्कृत, पौरोहित्य.
शुक्र- चित्रकला, गायन, वादन, नृत्य, संगीत, फैशन डिजाइन.
शनि- अंग्रेजी, उर्दू, तकनीक, यांत्रिक, खनिज शिक्षा, तांत्रिक, इंजीनियरिंग.
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