सामुद्रिक शास्त्रानुसार रत्न धारण विधान
सामुद्रिक शास्त्र में हाथ में ग्रहों एवं पर्वतों की स्थिति के आधार पर रत्नों का चयन काफी प्रचलित हैं l हाथो में भी नौ ग्रहों की स्थिति है l उनके ऊंच-नीच स्थान के आधार पर या पर्वत शिखरों के इधर-उधर खिसक कर किसी अन्य ग्रह की स्थिति के अनुसार रत्नों का निर्णय किया जाता है
हाथ में तर्जनी के मूल में बृहस्पती, मध्यमा के मूल में शनि, अनामिका के मूल में सूर्य, कनिष्ठा के मूल में बुध,मणिबंध के ऊपरी कनिष्ठा की ओर जाने वाले हिस्से में चन्द्रमा,मणिबंध के उपरी हिस्से में केतु, अंगूठे के मूल में शुक्र, तर्जनी के नीचे बृहस्पति- पर्वत के बाद एवं अंगूठे के बीच के हिस्से में मंगल तथा केतु के ऊपर और हथेली के मध्य भाग में राहु का स्थान है l हाथ में सूर्य पर्वत दबा रहने पर माणिक्य,चन्द पर्वत के निम्न होने पर मोती, बृहस्पति के कमजोर रहने पर पुखराज,बुध की ख़राब स्थिति में पन्ना,शुक्र के कमजोर रहने पर हीरा,शनि की ख़राब अवस्था में नीलम,मंगल के निर्बल होने पर मूंगा, राहु के दबे के होने पर गोमेद तथा केतु के ख़राब रहने पर लहसुनिया धारण करने से लाभ होता हैl
रत्न धारण हेतु आवश्यक नियन
कोई भी रत्न धारण करने से पूर्व ज्योतिषशास्त्र के निम्न नियमों को अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए –
रत्न धारण से पूर्व जन्मकुंडली में स्थिर ग्रह की दृष्टी दशा,अंतरदशा व गति पर ध्यान दिया जाना चाहिए l
कुंडली मव ग्रह के अंश भी देखने चाहिए l
जन्मकुंडली में उदय और अस्त पर ध्यान देना चाहिए,क्योंकि अस्त ग्रह से सम्बंधित नग या रत्न पहनने से उक्त ग्रह की शक्ति बढ़ती है
कुंडली में वकी तथा मार्गी ग्रह भी देखने चाहिए, क्योंकि पापी-वकी ग्रह की शांति आवश्यक होती हैं l
ग्रह के विरोधी रत्नों को कभी नहीं पहनना चाहिए l उसके स्थान पर मित्र रत्न (यदि आवश्यक हो तो) धारण किया जा सकता है l
अगर पुरुष बाएं हाथ में रत्न धारण करता है तो उसकी पत्नी को लाभ मिलेगा l इसके विपरीत यदि पत्नी दाएं हाथ में रत्न पहने तो उसके पति को उचित लाभ प्राप्त होगा l
प्रत्येक ग्रह कम से एक – दूसरे का बल या प्रभाव नष्ट करते हैं l सूर्य का बल शनि से, शनि का मंगल से, मंगल का बुध से, गुरु से और चन्द्र का मंगल से प्रभाव नष्ट होता है l
प्रत्येक ग्रह कम से एक – दूसरे से अधिक बलवान माने जाते हैं l शनि से मंगल, मंगल से बुध, बुध से गुरु, गुरु से शुक्र से चन्द्र – चन्द्र से सूर्य, सूर्य से शनि तथा केतु सबका बल कम करता है l
उपरोक्त ग्रहों का दोष व प्रभाव इस तरह से कम होता है l राहु का दोष बुध से, मंगल – बुध – राहु – शनि – राहु का दोष चन्द्रमा से, बुध – शनि - राहु का दोष मंगल से तथा मंगल – बुध – शनि राहु – बुध – शनि – शुक्र – गुरु –मंगल – चन्द्र का दोष सूर्य से कम होता है और उत्तरायण का सूर्य सभी दोषों का शमन करता है l
रत्न चयन के नियम
उपरोक्त नियमों के अलावा रत्न चयन के समय भी सावधानी बरतनी पड़ती है l अनिष्टकारक ग्रहों का कुप्रभाव कम करने हेतु या जिस ग्रह का प्रभाव क्षीण हो रहा हों, उसमें वृध्दी के लिए ज्योतिषी उस ग्रह के रत्न धारण करने की राय देते हैं l लेकिन एक साथ कौन – कौन से रत्न पहनना चाहिए, और किन रत्नों को नहीं धारण करना चाहिए, इस बारे में ज्योतिषियों की रे निम्नलिखित है –
हीरो के साथ – माणिक्य, मोती , पुखराज और मूंगा वर्जित है l
नीलम के साथ – माणिक्य पुखराज और मोती वर्जित है l
माणिक्य के साथ – नीलम, लहसुनिया, और गोमेद वर्जित है l
पन्ना के साथ – मोती और मूंगा वर्जित है l
गोमेद के साथ – माणिक्य, मोती, पुखराज और मूंगा वर्जित है l
पुखराज के साथ – हीरा, नीलम और गोमेद वर्जित हैl
मूंगा के साथ – हीरा, पन्ना, लहसुनिया और गोमेद वर्जित है l
मोती के साथ – हीरा, पन्ना, नीलम लहसुनियां और गोमेद वर्जित है l
रत्न धारण का विधान
ग्रहों को शक्तिशाली बनाने के लिए रत्नों को निम्न मात्रा, सम्बंधित धातु, धारण करना चाहिए –
मोती धारण करने से चन्द्र शक्तिशाली होता है l 2, 4 या 6 रत्ती का मोती चांदी की अंगूठी में शुक्लपक्ष सोमवार के दिन रोहणी नक्षत्र में धारण करना चाहिएl
सूर्य को शक्तिशाली बनाने के लिए 3 रत्ती का माणिक्य सोने की अंगूठी अनामिका में ही पहनी जानी चाहिए l
मंगल को बलशाली बनाने हेतु 5 रत्ती मुंगे को सोने की अंगूठी में धारण करना चाहिए l
बुध के लिए पन्ना की उपयुक्त समझा है, जो आमतौर पर पांच रंगों में मिलता है – तोते के पंख के समान, हल्के हरे पानी की तरह, मसूर पंख के समान, सेडुल फूल के रंग का और सिरस के फूल जैसा l लेकिन मयूर पंख के रंग वाला पन्ना सबसे अच्छा माना जाता है l इसके चुनार के वक्त यह जरुर देख – परख ले कि पन्ना चमकीला और पारदर्शी है अथवा नहीं l यदि ऐसा न हो तो उसे न लें l 6 रत्ती का पन्ना प्लेटिनम या सोने की अंगूठी में बुधवार को प्रात: काल उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में पहनना चाहिए l
बृहस्पति हेतु 5, 6, 9, या 11 रत्ती का पुखराज सोने की अंगूठी में धारण करें l इसे गुरुवार को पुष्ययोग में शुक्र को तर्जनी में पहनना चाहिए l
शुक्र के लिए कम –से- कम 2 कैरेट का हीरा मृगशिरी नक्षत्र में बीच की उंगली में पहनना चाहिए l
शनि के लिए नीलम धारण करना चाहिए l 3, 6, 7, या 10 रत्ती का नीलम पंचधातु की अंगूठी में, शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में पहनना चाहिए l लेकिन यह ध्यान रहे कि इसे मध्यमा उंगली में ही पहनें l
राहु को बलशाली बनाने के लिए 6 रत्ती का गोमेद उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को पहनें l अंगूठी पंचधातु की बनवानी चाहिए और इसे मध्यमा में धारण करना चाहिए l
केतु को शक्तिशाली बनाने के लिए लहसुनिया धारण करना चाहिए l इसकी अंगूठी पंचधातु की बनवाकर पुष्ययोग में बृहस्पतिवार को सूर्योदय से पहले पहनना चाहिए l
If you are going to use a passage of embarrassing hidden in the middle of text
Related Blogs