नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा

हम ग्रह और नक्षत्रों पर पहुँचने का प्रयास तो करते हैं. लेकिन मूल सकारात्मक ऊर्जा को जानने का प्रयास नहीं करते. इस संसार के वैज्ञानिकों को आदर पूर्वक चुनौती देना चाहिए कि ऊर्जा के मूल श्रोत कि खोज करें. हमारे मन का वेग जो चारों तरफ वाचाल घोड़ों की तरह दौड़ रहा है. उस पर नियंत्रण का प्रयोग करें तथा उस मन को समझे.

नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा

हम ग्रह और नक्षत्रों पर पहुँचने का प्रयास तो करते हैं. लेकिन मूल सकारात्मक ऊर्जा को जानने का प्रयास नहीं करते. इस संसार के वैज्ञानिकों को आदर पूर्वक चुनौती देना चाहिए कि ऊर्जा के मूल श्रोत कि खोज करें. हमारे मन का वेग जो चारों तरफ वाचाल घोड़ों की तरह दौड़ रहा है. उस पर नियंत्रण का प्रयोग करें तथा उस मन को समझे.

वर्तमान में वास्तु शास्त्र सिधान्तों का प्रयोग भवन निर्माण का मुख्य अंग बन चुका है. ज्योतिष विज्ञान कि उपेक्षा करते हुए कुछ वास्तु शास्त्री नकारात्मक एवं सकारात्मक ऊर्जा को आधार बनाकर भू-स्वामियों को भवन निर्माण का निर्देश करते हैं. जबकि अदृश्य नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा के स्वरुप एवं क्रियात्मक रहस्य को वे नहीं जानते हैं. जैसे विथिशूल, द्वारवेध आदि विभिन्न वास्तु दोष अशुभ परिणाम उत्पन्न करते हैं. जिसे नकारात्मक ऊर्जा का कारण बताया जाता है. जबकि इस नकारात्मक ऊर्जा के उत्पादकता के मूल रहस्य के ज्ञान से अपरिचित होते हैं.

ऊर्जा के विज्ञान से सर्व प्रथम भारत के ऋषियों ने विश्व को परिचित कराया. मन, बुद्धि, चित्त की गति का मूल आधार ऊर्जा है. पहला वैज्ञानिक महर्षि वात्सायन थें. जिसने मन के वेग कि ऊर्जा का ज्ञान वैज्ञानिक विधि से प्रस्तुत किया. इसी प्रकार महर्षि पातंजलि ने बुद्धि और चित्त कि गति कारण-रूप ऊर्जा के विज्ञान का अध्ययन कर उसका मानव शारीर पर पड़ने वाले प्रभाव और परिणामों को विधि पूर्वक प्रस्तुत किया. देव भूमि भारत में ऐसी-ऐसी विभूतियाँ उत्पन्न हुई है जिनके शारीर से उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा पूरे वन क्षेत्र को अहिंसक क्षेत्र बना देते थे. भगवान महावीर, भगवान बुद्ध जिस वन में आसन जमा लेते थे उस वन क्षेत्र के जीव अहिंसक हो जाते थे. कारन था उनके साधनामय शारीर से निकलने वाली आद्यात्मिक ऊर्जा.

अगर इस पर शोध नहीं किया गया तो चन्द्रमा, सूर्य, चन्द्र ग्रहण और नक्षत्र देखकर क्या होगा?? हम लोगों ने दूसरों के बारे में बहुत चिंता कर लिया. हमें अपने बारे में सोचना चाहिए. आध्यात्म का अनुशीलन ही ऊर्जा के मूल श्रोत तक हमें पंहुचा सकता है. इसी ऊर्जा को संग्रह करने का नाम आध्यात्म है. जो सकारात्मक ऊर्जा है. 

!!श्री सद्गुरु शरणम!!

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