उच्च के शुक्र एवं शनि का अध्यात्मिक रहस्य
शुक्र एवं बृहस्पति ग्रह का आपसी सम्बन्ध मित्रवत नहीं है. फिर भी शुक्र बृहस्पति की राशि मीन में उच्च का होत है. इसी प्रकार शनि न्याय और वैराग्य का करक होते हुए विलासी ग्रह शुक्र के तुला राशी में उच्च का होत है. इस विरोधाभासी सिद्धांत के आध्यात्मिक रहस्य कि विवेचना...
उच्च के शुक्र एवं शनि का अध्यात्मिक रहस्य
शुक्र एवं बृहस्पति ग्रह का आपसी सम्बन्ध मित्रवत नहीं है. फिर भी शुक्र बृहस्पति की राशि मीन में उच्च का होत है. इसी प्रकार शनि न्याय और वैराग्य का करक होते हुए विलासी ग्रह शुक्र के तुला राशी में उच्च का होत है. इस विरोधाभासी सिद्धांत के आध्यात्मिक रहस्य कि विवेचना...
महर्षि शुक महान तपस्वी, प्रज्ञा के धनी एवं शिव के परम भक्त हैं. फिर भी राजसी, तामसी एवं आसुरी शक्तियों के महान संरक्षक एवं गुरु है. इसका एक विशेष रहस्त है- नौ ग्रह के चिंतन संगोष्ठी मे देव ग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरु, बुध, द्वारा इनकी उपेक्षा इस कथा के विस्तार कि यहाँ आवश्यकता नहीं है. एक प्रज्ञावान एवं महान साधक को यदि ज्ञान के आलोक में रहने का अवसर प्राप्त हो तथा उस समय उसकी बुद्धि भी उसी अनुकूल बन जाये तो यह उसके लिए परमोच्च साधना के सफलता सौर सिद्धि का महत्वपूर्ण समय होगा.
शुक्र राजसी, तामसी और आसुरी शक्तियों का सहायक ग्रह है परन्तु शिव तत्त्व का महान साधक और ज्ञानी भी है. और यही शुक्र को जब ज्ञान की कारक राशि मीन में प्रवास करने का अवसर प्राप्त होत हो और इस शुभावसर पर यदि बुध भी उसका सहायक बनकर उसे साधना कि सिद्धि में सद्बुद्धि प्रदान करने में सहायक बने तो (शुक्र गृह जब मीन राशि में भ्रमण करते हुए रेवती नक्षत्र जिसका स्वामी बुध है का भोग करता है) यह शुक्र के साधना का परमोच्च समय होगा. अतः यही कारण है कि विलासी ग्रह शुक्र गुरु की राशि में प्रवास के समय उच्च का मन जाता है.
इसी प्रकार शनि महाराज महान कृष्ण भक्त तथा वैराग्य के कारक ग्रह है. ऐसा वैरागी ग्रह तुला राशि जो विलासी ग्रह शुक्र कि राशि है उसमें उच्च का कैसे होता है? कारन स्पष्ट है ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार तुला राशि में जब शनि विशाखा नक्षत्र जिसका स्वामी ज्ञान का कारक गुरु ग्रह है का भोग करता है. तो वह उच्च का माना जाता है. क्यूंकि यह समय शनि के वैराग्य कि कसौटी पर खरा उतरने का समय है. जिसमें उसके ज्ञान के कारक गुरु की पूरी मदद प्राप्त होती है. इस प्रकार शनि विलासिता के अलोक में भी निरपेक्ष रहते हुए कृष्ण भक्ति और साधना में अपने ज्ञान को स्थिर रखते हुए स्थित प्रग्य की भूमिका का निर्वाह करने में सफल होते है. इसलिए शनि तुला राशि में उच्च का माने जाते हैं.
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