नवरात्री पूजन विधि एवं महत्त्व
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा में कलश विधि-स्नान ध्यान के बाद शुभ मिट्टी द्वारा वेदी निर्माण करके सप्तधान्य वपन पूर्वक जल से परिपूर्ण स्वर, रजत, ताम्र अथवा मिट्टी का कलश विधि पूर्वक वैदिक मन्त्रों द्वारा स्थापित कर देवी का पूजन करना चाहिएI संकल्प-देश-काल एवं गोत्र-प्रवर आदि का उच्चारण कर “ममेहजन्मनि श्री दुर्गाप्रीतिद्वारा सकलांपचछीतिंपूर्वकं दीर्घायुर्वीपुलधनपुत्रपौत्राधनवाच्छित्रसंततिवृद्धि स्थिरलक्ष्मीकिर्तिलाभ-शत्रुपरजयादि-सदभीष्ट सिध्यर्थ शारादनवरात्रप्रतिपदि विहितकलशस्थापनादुर्गापूजन कुमार पुजनादिंक च करिष्ये”से संकल्प करेंIसंकल्प के बाद विधि पूर्वक वैदिक मन्त्रों द्वारा कलश स्थापित कर कलश पर वरुण का पूजन करके पुन:नूतन अथवा प्रतिवर्ष पूजित देवी की प्रतिमा पर भगवातीका आवाहन एवं पूजन करेंI पूजन मंत्र- जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनीI दुर्गाक्षमाशिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुतेI इत्यादि मन्त्रों से पूजन कर”आगच्छा वरदे देवी दैत्यदर्पनिपातिI पूजां गृहाण सुमुखि नमस्ते शंकरप्रिये” सर्वतीर्थमये वारि सर्वदेवसमन्वितेII इमं घटं समागच्छ तिष्ठ दैवगणैस्सहाII2II दुर्गेदेविसमागच्छ सात्रिघ्यामिह कल्पयI बलिपूजां गृहाणत्वमष्टिभि शक्तिभि: सहI इत्यादि मंत्रो द्वारा षोडशोपचार पूजन कर प्रार्थना एवं नमस्कार अर्पित करेंI कन्यापूजन विधि- नवरात्र पर्यन्त एक-एक प्रतिदिन अथवा एक-एक वृद्धि से अथवा प्रतिदिन द्विगुणित, त्रिगुणित आदि वृध्दि क्रम से अथवा नौ-नौ कन्याओं का नौ दिनों तक पूजन करना चाहिएI नौ कन्याओं के पूजन से भूमि तथा त्रिगुणित कन्या पूजन से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैI एक वर्ष की कन्या का पूजन में ग्रहण नहीं करना चाहिएI कन्या पूजन में विशेष- सर्व कार्यसिध्दी हेतु ब्राह्मण, युध्द में जय हेतु क्षत्रिय, धन प्राप्ति हेतु वैश्य, सुख प्राप्ति हेतु शुद्र तथा दारुण (भय) प्राप्ति हेतु अन्त्य जाति में उत्पन्न कन्याओं का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिएI
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