अमोघ फलदायी है शिवरात्रि व्रत

अमोघ  फलदायी है शिवरात्रि  व्रत

शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व हैl इस पुण्यतया तिथि का दूसरा पक्ष ‘ईशान-संहित में इस प्रकार बताया गया है:-

शिवलिंगतयोद्भटयोद्भूत:,कोटिसूर्यसमप्रभा:    ‘फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यो के समान परम तेजस्वी लिंग के रूप प्रकट हुए l’

शिवपुराण की ‘विघेश्वर-संहित में वर्णित कथा के अनुसार शिवजी के निष्कल (निराकार) स्वरूप का प्रतीक ‘लिंग’इसी पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था l इसी कारण यह तिथि ‘शिवरात्रि’ के नाम से विख्यात हो गई l जो भक्त-शिवरात्रि को दिन-रात निराहर एंव जितेद्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति व सामर्थ्य दवारा निश्चल भाव से शिवजी की यथोचित पूजा करता है, वह वर्षपर्यत शिव-पूजन करने का संपूण फल मात्र शिवरात्रि को सविधि शिवार्चन से तत्काल प्राप्त कर लेता है l 

शिवपुराण की ‘कोतिरुद्रसंहित’में शिवरात्रि-व्रत करने से भील पर भगवान शंकर की अद्भूत कृपा होने की कथा मिलती हैं l भोलेनाथ के समस्त व्रतों में ‘शिवरात्रि’सर्वोच्च पद पर आसानी है l भोग और मोक्ष की कामना करने वालों को इस ‘व्रतराज’का पालन अवश्य करना चाहिए l देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न रखनेवाले सभी मनुष्यों के लिए यह शिवरात्रि-व्रत सर्वश्रेष्ठ है l

‘स्कंद्पुराणंदपुराणमें इस महाव्रत की प्रशंसा में कहा गया है l

परत् परतरं नास्ति शिवरात्रिपरात् परम् l

यह शिवरात्रि-व्रत परात्पर हैं अर्थात इसके समान दूसरा कोई और नहीं हैं l स्कन्दपुराण के नागरखंड में ऋषियों के पूछने पर सूतजी कहते हैं – ‘माघ मास की पूर्णिमा के उपरांत कृष्णपक्ष में जो चतुर्दशी तिथि आती हैं,उसकी रात्रि ही l शिवरात्रि है l उस सर्वव्यापी भगवान शिव समस्त शिवलिंग में विशेष रूप संक्रमण करते है l कलियुग में यह व्रत थोड़े से ही परिश्रम से साध्द होने पर भी महान पूर्णप्रद होने पर तथा सब पापो का नाश करने वाला है l जिस कामना को मन में लेकर मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है l वह मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है इस लोक में जो चल अथवा अचल शिव लिंग है,उन सब में उस रात्रि को भगवान शिव की शक्ति का संचार होता है l इसलिए इस महारात्रि को ‘शिवरात्रि’कहा गया है l इस एक दिन उपवास रखने हुए शिवार्चन करने से सालभर के पापों से शुध्दि हो जाती हैं l जो मनुष्य शिवरात्रि में भगवान शंकर की पांच मंत्रो से पंचोपचार विधिपूर्वक गंध (सफेद चन्दन)पुष्प,धुप,दिप,नैवेघ,चढाते हुए पूजा करता है,

वह निसंदेह पापरहित हो जाता है l ये मंत्र है :-

ॐ वामदेवाय नम: l

ॐ अघोराय नम: l

ॐईशानाय नम: l

ॐ तत्पुरुषाय नम: l

इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष सन्नादि नित्य कर्मो से निवृत्त होकर सर्वप्रथम शिवपुत्र श्री गणेश का स्मरण करके शिवालय या घर में शिवलिंग के सम्मुख व्रत का संकल्प करें l शिवरात्रि के व्रत में उपवास करते हुए रात भर जागने से भगवान शंकर अनुकाम्पां अवश्य प्राप्त होती है l इस संदर्भ में स्वयं शिव जी का यहं कथन है :- 

‘फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अर्द्धरात्रिव्यापनी चतुर्थदशी की रात्रि (महाशिवरात्रि) में जागरण,उपवास और आराधना से मुझे जितनी संतुष्टि प्राप्त होती है l उतनी किसी अन्य साधना से नहीं l कलयुग मुझे प्राप्त करने का यह सबसे सरल व सुगम उपाय है l’ 

संस्कृतज्ञ शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी के सस्वर पाठ के साथ रुद्राभिषेक करें l सामार्थ्यवान् सुयोग्य आचार्य के माध्यम से रूद्रार्चन कर सकते है l अन्य लोग पंचाक्षर मंत्र (नम: शिवाय) द्वारा पवित्र जल गोदुग्ध,पंचामृत आदि से शिवलिंग का अभिषेक करे l शिवरात्रि के चारो प्रहरों में पृथक पूजन का भी विशेष विधान है l रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध से दूसरे प्रहर में दही से,तीसरे प्रहर में घी से तथा चतुर्थ (अन्तिम) प्रहर में शहद द्वारा शिवलिंग का अभिषेक करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है l रात भर जगने वाले भक्त ‘शिव’ नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव-स्तोत्र का आश्रय लेकर रात्रि-जागरण सफल कर सकते है l शिवरात्रि में सोना अनंतपूर्ण राशि को खोना है l इसलिए यत्नपूर्वक रात्रि-जागरण अवश्य करे,लेकिन जो लोग किसी कारण वर्ष रातभर जागने में असमर्थ हों वे शिवरात्रि की अर्द्धरात्रि में उपलब्ध होने वाले ‘महानिशियाकाल’ में पूजन करने के उपरान्त ही शयन करें l शिव जी को बिल्वपत्र विशेष प्रिय है l अत: कम से कम 11 अखंडित बिल्व पत्र शिव लिंग पर अवश्य चढ़ाए l भगवान शंकर को आक, कनेक, मौलसिरी, धतुरा, कटेली, छोंकर के फूल चढ़ाए जाते हैं l शिवपुराण में लिख है, कि देवाधिदेव महादेव की जिन अष्ठमूर्तियों से यह अखिल ब्रहांड व्याप्त है उन्ही से सम्पूर्ण विश्व की सत्ता संचालित हो रही हैं l भगवान शिव की इन अष्टमूर्तियों को इन्ही आठ मंत्रों से पुष्पाजन्ली दे -  

ॐ शर्वाय क्षितिमूर्त्तये नम: l

ॐ भवाय जलमूर्त्तये नम: l

ॐ रुद्राय अग्निमूर्त्तये नम: l

ॐ उग्राय वायमूर्त्तये नम: l

ॐ भीमाय आकाशमूर्त्तये नम: l

ॐ पशुपतये यजमानमूर्त्तये नम: l

ॐ महादेवाय सोममूर्त्तये नम: l

ॐ ईशानाय सूर्यमूर्त्तये नम: l

पुराणों के मत से शिवरात्रि-व्रत मात्र शैवो के लिए ही नहीं वरन् वैष्णव,शाक्त, गाणपत्य,सौर आदि सभी संप्रदायों के मतावलंबियों के लिए भी अनिवार्य है l प्राचीनकाल में राजा भरत, मान्धाता ,शिवि, नल, नहुष, सगर, युयुत्सु, हरिश्चंद आदि महापुरुषों ने तथा स्त्रियों में लक्ष्मी, इंद्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती, रति आदि देवियों ने भी शिवरात्रि  -व्रत का श्रधर्दापूर्वक पालन किया थाl इस लोक के सभी पुण्यकर्म इस ‘व्रतराज’ की समानता नहीं कर सकते l फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी ‘महाशिवरात्रि’ से प्रारम्भ करके वर्षपर्यन्त प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष में मध्यरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी ‘मासिक शिवरात्रि’ में व्रत करते हुए वार्चन करने से असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाता हैं l

कुंवारियों के लिए विवाह का सुयोग बनता हैं l विवाहितों के दाम्पत्य जीवन की अशांति दूर होती है l वस्तुत: शिवरात्रि भगवान शंकर के सान्निध्य का स्वर्णिम अवसर प्रदान करती हैं l इस अमोघ व्रत के फलस्वरूप जीव शिवत्व की प्राप्ति से भगवान शिंव का सायुज्य अर्जित कर लेता है l  

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